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"अधूरी सी बात"

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“अधूरी सी बात “  "जाने क्यूँ अधूरी  सी है , पूरी हर बात भी   सदा ना पहुँचती उस तक , शायद अपने किसी जज़्बात की   यूँ तो हर गलत सजा बन के सामने आ ही जाता है   जीती नहीं मगर हमने कोई बाजी, सही अलफ़ाज़ की  किस्मत के ही हवाले रहे अक्सर दिन अपने   हालत बद भी और बदतर भी   तब यूँ सोचा की शायद अब गर्दिश सी है सितारों पे अपने   जाने क्यूँ मगर वो रौशनी नहीं दिखती आज भी   कौन कहता है की ख्वाब सिर्फ मेहनत से सच हुआ करते हैं   ये दुनिया गुलाम है ,हथेली की लकीरों के मेहराब की  कहता है दिल बस चला चल राहों पे यूँ ही   ना डर रेगिस्तानो से , और ना तमन्ना कर सब्ज बाग़ की  यूँ तो लोग चाँद पे बस्तियां बसा चुके   जमींतो क्या आसमान को भी अपना बना चुके   मगर हो के भी सब अपना ,  झूठी है दुनिया ये आज की   और हर मुकम्मल ख्वाब में भी   मौजूदगी है , कहीं ना कहीं, इक अधूरी सी बात की " (अनिल मिस्त्री)

मेरा नया लेख नवभारत पर

मेरा नया लेख नवभारत पर http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/6158503.cms

"सितारों के पार"

"सितारों के पार आज , हम चलें कुछ इस कदर के हर शब् , रौशन हो जाये नूर से हमारे मुफलिसी में शिकायत नहीं होती कभी किसी को किसी से करो कुछ ऐसा की इश्क में हर लम्हा गम का हो जाए ज़िंदगी से दूर हमारे"

"खुद को पाना"

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अक्सर हम खुद से दूर हो जाते हैं , अपने काम में , अपनी पढाई में , अपने जिन्दगी जीने के रास्तो और उसपे अपनी जिन्दगी की गाडी चलने की धुन में भूल जाते है की , हम कैसे है, क्यों हैं ,और हमारी असल ख़ुशी क्या है ? कभी - कभी अपने सपनो और हकीकत की कशमकश और उस पर अपने अधूरे सपनो के ढेर और उससे मिलने वाले दर्द , हमें खुद से और दूर कर देते हैं . उस पे भी जबरदस्त प्रतियोगिता वाला आज का वक़्त , हमें और ज़िंदगी से दूर कर देता है . इसलिए कुछ ना कुछ ऐसा होना चाहिए जो , हमें खुद से दूर ना होने दे . मसलन कोई साज बजाता है , कोई तस्वीरें बनता है , कोई हवाओं में उंगली की नोक से अपने ख़्वाबों के महल बनता है , कहे तो एक अजीब दुनिया में जीने की कोशिश करता है , उस वक़्त उस ख़ुशी को वो शायद किसी को समझा नहीं सकता , मानो गूंगे का गुड हो , जिसे वो किसी से कह नहीं सकता मगर अन्दर ही अन्दर खुश होता है . ज़िंदगी बड़ी उलझी हुई चीज़ है , ख़्वाबों का अधूरापन उनके पूरे होने में भी शामिल रहता है . चाहे आप कुछ भी कर ले , कुछ भी पा ले , मगर मन की ख़ुशी खुद को पा लेने में ही मिलती है . अकसर औरों की तरह जीने की कोशिश में भ

"बारिश की दिल्ली वालो से दुश्मनी "

बारिश की दिल्ली वालो से दुश्मनी जाने क्या बात है की दिल्ली के आस पास हिमाचल और उत्तरांचल जैसे खूबसूरत राज्यों के बावजूद , बारिश सब जगह होती है मगर दिल्ली प्यासी ही रह जाती है ? कभी हलकी सी बारिश होती भी है तो मिडिया ऐसा हल्ला करता है और सड़कों पे ऐसा जाम लग जाता है की , बारिश रूठ के चली जाती है . कुछ लोग कहते है की दिल्ली में सबसे ज्यादा पापी भरे पड़े है शायद इस लिए ही दिल्ली में बारिश नहीं होती , ये कारण भी सही लगता है क्योंकि , सारे बड़े नेता , राजनेता और भ्रष्ट नेता यही तो रहते हैं . जितना बड़ा नेता उसके दामन पे उतना बड़ा दाग . क्या करे प्रजा तंत्र होता ही ऐसा है. फिर चाहे बात भोपाल गैस काण्ड में मरने और यातना भोगने वाले लाखों लोगों की हो या बोफोर्स काण्ड हो या कोई और राजनैतिक घोटाला , सजा तो दिल्ली को ही भुगतनी पड़ती है. मंत्री जी कहते है की दिल्ली वाले महंगाई झेल सकने में सक्षम है , कोई उनसे कहे की कभी एक बार जरा दिल्ली की सड़कों में कूड़ा बीनने वालो या सिग्नल पे भीख मांगने वाले बच्चों से मिल कर आये , तो पता चलेगा की कितने दिल्ली वाले महंगाई की मार झेलने की तैयार है ? ऐसा लगता है सरकार