"गलत "


"सोचा था की धमाकों की भीड़ होगी क़दमों में हमारे
सैकड़ों सैलाबों की ताक़त होगी इरादों में हमारे
चल के आज मीलों दूर लगता है
आखिर क्या पाया , हमने अपना दिल जला के
जाने कहाँ, कब, क्या गलत हुआ मालूम नहीं
मंजिल खो गयी मगर, मंजिल की राहों में आ के "

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