"हादसों का सफ़र "


"ये ज़िंदगी इक सफ़र है हादसों का
कई संगीन, मगर कुछ हसीं भी हैं
ये आरामतलबी का शौक
जायज नहीं , मालूम है मुझको
दुनिया जीतने की मगर
नहीं कोई वजह भी है
मै वक़्त काटता नहीं यूँ ही
सोकर अपने हरम में
इक ख्वाब बुनता हूँ
होकर सबसे जुदा भी
तलाशता हूँ मै रोज़ खुद को
वो बाकि कहीं मेरी खुशनसीबी भी है
लगता है कभी की भूल गया राह अपनी
तपिश भरी गर्म राहों पे मेरी
शायद उनकी जुल्फों की छांव जमी भी है
तमन्ना तो की थी बड़ी उनकी
के शायद वो लबों की सुर्खी
से ज़िंदगी में हमारी रंग भरेंगे
बेरंग तो नहीं अब मगर
सुर्ख लहू से अब तो हवा रंगीन भी है
ये ज़िंदगी इक सफ़र है हादसों का
कई संगीन , मगर कुछ हसीं भी हैं "


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