"मैखामोश नही के इकराज़ दफ़न है
दिल मेरा भी धड़कता है
बस अरमानो की लाश पे कफ़न है
सुनने वाले सुन ले कभी तू भी आरजू हमारी
हर पन्ने पे अपनी तकदीर के बस इबारत-ऐ-सितम है
लगता है कीअब तो नज़ारे बहारों के आयेंगे ज़रूर
सब्जबाग लाह्लाहयेंगे जरूर
महंगी हो रही अब तो हर रात अपनी
क्या कहें सफर की अपने
शुरू से आखिर तक बस उजाड़ चमन हैं
मै खामोश नही ..........
दिल मेरा भी ............
छीन ले तू भी हर लखतेजिगर हमसे
ऐ खुदा तेरी झोली में भी हमेशा
अपनी खातिर इक दुआ कम है
मै इतना बड़ा तो नही की तुझसे लड़ जाऊं
भूलकर तुझे , अपने इबादतगाह बनाऊं
शायद ना मालूम तुझको भी
उठा कर हाथ तेरे सजदे में
बंद कर के निगाहें अपनी
ये जिन्दगी चाहती, बस तेरी इक नगहें-करम है "

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