"बिन पिए"
"उनकी मोहब्बत हमको रास ना आई कभी
वो सुर्खी उनके लबों की , लबों पे हमारे ना छाई कभी
आज भी हम अंधेरों में , नशा किया करते हैं
नींद बगैर तेरे , बिन पिए ना आई कभी
इक बार छलक जा इस कदर ऐ शराब
इस अँधेरी रात में ,
निकल जाए कहीं से अफताब
के वो
खनकती हँसी उनके रुखसारों पे फ़िर ना आई कभी "
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