"ख्वाब और हकीकत (virtual vs real)"

हकीकत और ख़्वाबों का बहुत पुराना रिश्ता है , और दोनों के बीच का फ़र्क़ भी ।
आज मै बड़ी ईमानदारी से खुद के साथ क़िस्मत के मज़ाक़ को बता सकता हूँ। मै ख्वाब देखा करता था की मै धनवान, सुंदर, सजीला और सुखी इंसान बनूँगा। बस मुझे इंतज़ार अपने बड़े होने का था। मगर हकीकत मै ना मै धनवान बन पाया , ना ज्ञानवान और ना ही सुखी । ज्ञान मिला भी तो बहुत कुछ ऐसा जिसका जिन्दगी में बहुत कम इस्तेमाल हो। रही सुंदर और सजीले होने की तो वो भी कुछ ऐसी नही की धन और सुख मिले। ख्वाब में परियां हम पर गुलाब जल की तरह जान छिड़कती थी मगर हकीकत में कोई साइड डांसर या जूनियर आर्टिस्ट भी नही मिली। मुझे शौक था बेशकीमती कारों का और खूबसूरत गाड़ियों का , मेरे कमरे की दीवार ऐसी गाड़ियों की तस्वीरों से भरी हुई थी , मगर पिछले कई सालो से मै , अपनी दो पहिया ही चला रहा हूँ । कभी कभी टैक्सी में सफर कर लेता हूँ। जिन्दगी ने मेरे सपने पूरे ज़रूर किए मगर उस शिद्दत से नहीं, जैसे मै चाहता था। इसलिए ख्वाब और हकीकत का फासला अभी भी कायम है।
मैंने बचपन में सपना देखा था फाइटरपायलट बनने का ,या सच कहूँ तो उस समय cocacola का एक aid आता था, उसमें अपने प्लेन से takeoff के बाद  एक सफ़ेद रँग की bike पे hero आता, तो सफ़ेद कपड़ो में ही , सफ़ेद लिली के फूलों का बुके लिए , होठों पे मुस्कान लिए , एक खूबसूरत लड़की अपनी बाहें फैलाये उसका इंतज़ार करती थी। लेकिन इस ख्वाब की हकीकत ये बन गई की मै फायटर पायलट तो नही बन पाया , लोको पायलट बन गया , और जब धूल भरे रेगिस्तान से अपने काले पीले इंजन से डीजल के धुएँ पे खप कर जब मै उतरता , तो एक यमराज जैसी शकल वाला खलासी हाथ में हथोडी और पाना लिए कहता , "सब ठीक है या फ़िर कोई गड़बड़ छोड़ कर आए हो ? " वाह खुदा गजब की तेरी खुदाई , मांगी थी जन्नत , दोजख है पायी ।
लोगों को मेरे ख्वाब सुन कर लगता की , ये आदमी ज़रूर कुछ करेगा , मगर ये तो कोई भी नही जनता की कितना करेगा ?
कुछ लोग हमेशा कहते है की "somthing is better than nothing " मुझे ये बातें और ये कहावत समझौता पसंद लोगों की लगती हैं। और अगर जिन्दगी में कुछ करना है तो अपने सपनों में मिलावट करना बंद कर दो। हाँ तो पूरा हाँ और ना तो पूरा ना। माना की जिन्दगी एक खेल है , "its very better to try & fail than not trying it all " मगर जब तक खेल खेलना है तबतक कभी ये नही सोचना चाहिए की हार नाम की भी कोई चीज़ होती है। माना की सपने टूटते हैं , बहुत तकलीफ देते हैं और उन निठल्लों को मौका देते हैं जो ख़ुद तो कुछ नही करते मगर औरों की हार का पूरा मज़ा उठाते हैं। मै ऐसे लोगों का भी शुक्र गुजार रहा हूँ , क्योंकि ये , हमारे अन्दर की आग को जिन्दा रखते हैं। managment की भाषा में इसे एक प्रकार का अभिप्रेरण (motivation) कहा जाता है। अगले की बेईज्ज़ती करो , अगर वो अपनी इज्ज़त करता है तो अपना performance सुधार लेगा।

माना की मेरे सपनों में मिलावट हो गई , वक़्त ने मज़ाक़ बना डाले, ज़िंदगी खुद पर ही हँसने लगी और क़िस्मत…उससे तो ज़िंदगी भर जँग चलती ही रही है. मगर पिच में उतरने वाला हर बल्लेबाज century तो नही बना पता ना ? मगर इस बात से इतना तो ज़रूर पता चलता है की वो पिच पे खेलने का दम रखता है । और असली बल्लेबाज तो वो है जो भले ही सेंचुरी ना बनाये, मगर जब तक पिच पर रहे bowler की नाक में दम रखे और जनता का पूरा मनोरंजन करे। इसे ही जिन्दगी कहते है। हम कौन सा field चुनते हैं अपने लिए ये उस उमर में तय होता है जब हम ज्यादा समझदार नही होते , हमारे ज्यादातर निर्णय हमारे घर के लोग , या माँ बाप लेते हैं। अगर हम अपनी राय भी बताते है, तो वो या तो अपरिपक्व (amature) होती है , या वो नज़रन्दाज़ कर दी जाती है। फ़िर हमारे देश में जहाँ गलाकाट प्रतिस्पर्धा है और लाखों बच्चे रोज़ जन्म ले रहे हैं ऐसे में हम आधे अधूरे और टूटे सपनों का ढेर बन जाते हैं । इसलिए चाहे जो भी हो अपने ख़्वाबों को कभी मरने मत दो , उन्हें जिन्दा रखो, एक दिन ज़रूर आयेगा जब ख्वाब से ज्यादा हकीकत खूबसूरत होगी। क्योंकि फ़र्क़ दोनों में हमेशा रहेगा ना ?
(अनिल मिस्त्री)

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