"वो लाख करें इनकार "

"वो लाख करें इनकार , मगर यकीन नही आता

नफरतों पे उनकी, इक बार भी यकीं नही आता

घुल चकी है मेरी वफ़ा उनकी रगोंमें इस कदर

फरेब उबकी जुबान से, निगाहों में इक बार भी नही आता

भुला दो उमर भर को मेरी बातें

आसमा से कह दो वो ना लाये चाँदनी रातें

रोज़ कहते हैं वो की ये मुलाकात आखरी है

मिले बिना मगर उनको भी करार नही आता

वो लाख करें इनकार मगर यकीं नही आता

नफरतों पे उनकी .............

मै गुमहो चुका , उनमे ना जाने कबसे

मेरी दुनिया है , जुदा इस दुनिया से

कैसे कहूं उनसे की यूँ ही किसी पे ऐतबार नही आता

और खाली दिल की दीवारों पे वफ़ा का रंग बार-बार नही आता

वो लाख करें इनकार मगर यकीं नही आता

नफरतों पे उनकी , इक बार भी यकीं नही आता "

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"बेशरम का फूल "

मुद्दत