"पिटते पति" (हास्य कविता)


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"शाम की मित्र मंडली जमी थी
पान गुटकों और , चटपटी बातों से दुनिया थमी थी
की अचानक एक परम मित्र ने चर्चा छेडी
गुत्थी अपने दिल की कुछ इस कदर खोली
कहा भाई साहेब आजकल की स्त्रियाँ बदल गई हैं
तरक्की के मामले में वो मर्दों से भी आगे निकल गयीं हैं
पहले वो सर झुका के रहा करती थी
हाल हो जैसा भी मगर दुनिया के आगे मुस्कुराया करती थी
पति और घर उसकी दुनिया थे
और बिगडे हाल वो कुशलता से सवारा करती थी
मगर बुरा हो इन टी वी सिरिअलों का
इन्होने अजब की माया फैलाई है
आज की स्त्री किसी के बस में नही आई है
आज की स्त्री जाने क्या क्या करती है
पल में सीता तो पल में शूर्पनखा बन जाती है
पानी भी पिलाये तो शक होता है
षडयंत्र रचना ,शक करना तो इनका जनम सिद्ध अधिकार मालूम होता है
ये कौन सी रचना है प्रभु की
जाने और क्या मर्ज़ी बुद्धू बक्से की
पुरूष तो सदा ही व्यभीचारी था
प्रकृति के नियमों का आभारी था
परिवार की रक्षा करना और दुनियादारी उसका काम था
अच्छे नागरिक बनाना , स्त्री के नाम था
पुरूष घाव खाता और देता था
थका हारा जब घर लौटता, तो स्त्री मरहम लगाती थी
इसी नियम से परिवार नाम की संस्था चल पाती थी
मगर भइया अब तो सब उल्टा पुल्टा हो चुका है
स्त्री भी बरबाद होने और करने पे आमदा हो गई है
कौन संभाले इस दुनिया को, अब तो हिरोइन भी वैम्प हो गई है
ये तो क्रांतीकारी परिवर्तन है
समाज नाम की संस्था के जीवन मरण का प्रश्न है
ऊपर से आजकल के पुरूष भी पुरूष जैसे नही लगते हैं
कान में बाली और बाल लंबे करे फिरते हैं
छनिक सुख की खातिर, अपनी या परायी सब स्त्रियों की सेवा धरम मानते हैं
कभी- कभी तो पुरूष प्रेम भी पालते हैं
बर्बादी इस समाज और परिवार की तो हो गई है
जाने क्या होगा इस दुनिया का, इसकी तो उलटी गिनती शुरू हो गई है
बहुत देर से सुन रहे थे परम मित्र की बातें शर्मा जी
जब ना रहा गया तो बोले
लाला जी क्यों परेशान होते हो
लगता है आजकल औरतों के धारावाहिक बहुत देखते हो
बंद घर में तुम भी कौन सा महापुरुषों वाला काम करते हो
सेवा तो तुम भी बहुत गृहलक्ष्मी की किया करते हो
आज ये उलटी गंगा क्यों बहाई है
छोड़ो करनी गोल मोल बातें
सच बताओ , लगता है ,
आज फ़िर गृहलक्ष्मी से उनके उलूक ने मार खायी है "









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