"इक बात "


"मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे

बरसों से दिल में छुपायी , इक बात कहनी थी मगर तुमसे


मै क्या हूँ, क्यों हूँ , ये तुमसे मुझे कहना है

बड़ा वीरान है दिल और रास्ता बड़ा सूना है


गुजारे कितने तनहा सफर हमने

तम्मंनाओं ने तोडे दम जाने कितने


और दर्द का सैलाब जब भी बढ़ता रहा

ये दिल बस, जिन्दगी से तुम्हारी ही आरजू करता रहा


छुपाये थे ये राज़ , दिल में जाने कबसे

मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे


बहुत समझा जिन्दगी को, मगर फ़िर भी ना समझे

सुकून की तलाश में हम, ज़माने भर में भटके


ना जाने क्या-क्या खोया है उमर भर

मेरे अश्क की इक बूँद से, बड़ा नही समंदर


मेरी तस्वीरों की हकीकत, बन गए तुम

मिल के तुम से गम सारे, हो जाते गुम


इस वीरान चमन में , बहार बन के आ जाओ

गर्म राहों पे मेरी , घटा बन के छा जाओ


कहनी थी बस , यही इक बात तुमसे

के ये खुशनसीबी है , की मिले हो तुम, आज हमसे


कहना है और, बस यही, के कभी ना जुदा होना फ़िर हमसे

मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे "

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