"इंतज़ार"

१३-११-२००७


आज बरसों के बाद मुझे ख़ुद को आंकने का मौका मिला है। आज मुझे वो मिला जिसे मै कई सालों से तलाश रहा था। मगर आज भी दिल में उहा पोह मची है , की वो आज भी मेरा है या नही ? आज पहली बार मेरा इंतज़ार उमर से छोटा लगा , वरना मैंने तो इसे उमर से बड़ा ही मान लिया था। आज मै कुछ ऐसी लाइनेलिखने जा रहा हूँ , जो शायद मेरी जिन्दगी की अव्वल दर्जे की नज्मों और शेरो में गिनी जाए । या शायद ना भी हो मगर मेरे दिल की खालिस बातें सीधी कागज़ पे आएगी।


। "चाँद मेरे आगोश "
" ऐ चाँद आज तुझे आगोश में ले लूँ
ये दिल करता है
ख़्वाबों को रेशम से बुन लूँ
ये दिल करता है
मालूम है पल-पल सरकती है वक्त की रेत
हथेली में अपनी जिन्दगी समेट लूँ
ये दिल करता है
मुझसे पूछो इन्जार-ऐ-दीदार की वो घडियां
जखम, दर्द, हार और वो लम्बी खामोशियाँ
आज हर दर्द अश्कों में बहा दूँ
ये दिल करता है
जिन्दगी अपनी तेरी चाहतों से सजा लूँ
ये दिल करता है "

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