"आवारा ख्वाब "


"बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे , टिकते ही नही किसी शाख पर
ना थमते हैं , ना रुकते हैं, बस बरस जाते हैं किसी बहार पर
ना माँगा मेरे ख़्वाबों ने कुछ किसी से
बस दे डाला अपना सब कुछ खुशी से
लहलहाई हैं वादियाँ जाने कितनी
खिलाये हैं इन्होने , गुल जाने कितने
दे के लबों को मुस्कान , बढ जाते हैं अपनी राह पर
बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे टिकते ही नही किसी शाख पर "

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