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अगस्त, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"इंतज़ार ३ "

५। "मुकम्मल " "इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो रूह को हमारी , आस्मां से जन्नत में आने दो उमर भर को आ जाओ हमारे आगोश में ग़मों को अपने , हमारे सीने में छुपाने दो मुस्कुराहटों को हमारी , अपने लबों पे सजाने दो इस रिश्ते को हमारे , दोस्ती से आगे बढ़ाने दो जलती है रूह , टूटता है दिल सूनी होती है जब , तेरे बगैर महफ़िल समन्दर की लहरों को आज चाँद से मिल जाने दो दिल की ज़मीन को अश्कों से , भीग जाने दो इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो रूह को हमारी आस्मां से , जन्नत में आने दो मुझको मालूम है, यकीं नही तुझको , मुझ पर किनारों पर ही तैरते रहे , उमर भर आज दिल की गहराइयो में हमें समाने दो वफ़ा की हमारी ताक़त को आजमाने दो और इस रिश्ते को हमारे दोस्ती से आगे बढ़ाने दो मुझको याद है , खुशी में तेरे रुखसारों का सुर्ख होना कर के नम आखें , मेरे ग़मों में तेरा खोना याद है ये भी की कैसे तुम निगाहें पढ़ जाया करते थे रह -रह के बेवजह हक़ जताया करते थे बस इस खुमारी में ही सारी उमर बीत जाने दो हाथों की तरह आज दिल भी मिल जाने दो मुझको मालूम है रुसवाई से , दिल तुम्हारा डरता है सवालों के स

"इंतज़ार २ "

२। "अनजानी सी उम्मीद "   "शोले हमारी राहों पे यूँ ही बरसते रहे  खुले पाँव हम भी हंस के चलते रहे  हर मुश्किल आसान सी लगने लगी थी  तेरी मुस्कुराहट, मेरे जखम सीने लगी थी अनजानी सी उम्मीद पे हम भी बढ़ते रहे बना कर जाम तेरे , हर दर्द को पीते रहे  दो पल की जुदाई ने , मगर , उन्हें क्या बना डाला  हमराज़ थे जो कल , वो बेवफाई कर गए कल तक देने वाले मरहम , अब जखम चढाते रहे  महकाने वाले मेरे चमन को , वीरान बनाते रहे  शोले मगर हमारी राहों पे यूँ ही बरसते रहे खुले पाँव हम भी हंस के चलते रहे " ३। "जन्नत " "मुझको ख़बर नही की जन्नत क्या चीज़ है   तेरे निगाहों में मुकम्मल जहाँ नज़र आता है   मुझे अमीरों की जिन्दगी में यकीन नही बस उमर भर तुझे दिल से लगाने को दिल चाहता है  मेरे खुदा माफ़ करना मुझको मेरे महबूब पे  मुझको, तुझसे ज्यादा यकीन आता है "

"इंतज़ार"

१३-११-२००७ आज बरसों के बाद मुझे ख़ुद को आंकने का मौका मिला है। आज मुझे वो मिला जिसे मै कई सालों से तलाश रहा था। मगर आज भी दिल में उहा पोह मची है , की वो आज भी मेरा है या नही ? आज पहली बार मेरा इंतज़ार उमर से छोटा लगा , वरना मैंने तो इसे उमर से बड़ा ही मान लिया था। आज मै कुछ ऐसी लाइनेलिखने जा रहा हूँ , जो शायद मेरी जिन्दगी की अव्वल दर्जे की नज्मों और शेरो में गिनी जाए । या शायद ना भी हो मगर मेरे दिल की खालिस बातें सीधी कागज़ पे आएगी। १ । "चाँद मेरे आगोश " " ऐ चाँद आज तुझे आगोश में ले लूँ ये दिल करता है ख़्वाबों को रेशम से बुन लूँ ये दिल करता है मालूम है पल-पल सरकती है वक्त की रेत हथेली में अपनी जिन्दगी समेट लूँ ये दिल करता है मुझसे पूछो इन्जार-ऐ-दीदार की वो घडियां जखम, दर्द, हार और वो लम्बी खामोशियाँ आज हर दर्द अश्कों में बहा दूँ ये दिल करता है जिन्दगी अपनी तेरी चाहतों से सजा लूँ ये दिल करता है "

"जुल्फें"

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१।" जुल्फें तुम्हारी जो खुल कर बिखर गई हैं दिल मेरा मानो खो गया कहीं है हकीकत हो तुम, मुझे यकीन नही है डरता हूँ कहीं ये ख्वाब तो नही है " २। "इक अरसे से प्यासी रही दिल की वादी मेरी इक बार जुल्फें तो बिखरा दो वो रिमझिम तेरी हँसी की वो ठंडी बयार, तेरी निगाहों की गर्म हो रही , धूपसी साँसे , रूह से हमारी मिला दो बड़ा सर्द है मौसम आज, तमन्नाओं का इक सुलगता हुआ शीरीं सा शोला सुर्ख रुखसार का , लबों को हमारे दिला दो यूँ तो सिले ही रहे लब अक्सर ज़माने के आगे दिल में उफनता , मोहब्बत का गुबार हटा दो ना रहे आज तकल्लुफ कोई , शुक्रिया और शर्मिन्दगी के अल्फाज़ मिटा दो बहुत प्यासा हैं, दिल हमारा जाने कब से रंगों आब का वो मोहब्बत भरा जाम पिला दो इक अरसे से प्यासी रही दिल की वादी मेरी इक बार जुल्फें तो बिखरा दो "

" बे इन्तहां मोहब्बत "

"बे इन्तहां मोहब्बत का वो भी क्या ज़माना था जिन्दगी तेरी चाहत का बस इक फ़साना था वक्त ने तन्हाई भर दी अब तो ज़िन्दगानी में हर पल अब तो कटताहै मुश्किल में किस्मत को तो चाहिए बस एक बहाना था बेमेल वो मोहब्बत बेमानी थी फ़िर भी तुम हमारी जिंदगानी थी दुनिया कहे चाहे कुछ भी दिल हो के जुदा तडपे जितना भी तुम्हे तो हमसे एक दिन, दूर ही जाना था "

"पिटते पति" (हास्य कविता)

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"शाम की मित्र मंडली जमी थी पान गुटकों और , चटपटी बातों से दुनिया थमी थी की अचानक एक परम मित्र ने चर्चा छेडी गुत्थी अपने दिल की कुछ इस कदर खोली कहा भाई साहेब आजकल की स्त्रियाँ बदल गई हैं तरक्की के मामले में वो मर्दों से भी आगे निकल गयीं हैं पहले वो सर झुका के रहा करती थी हाल हो जैसा भी मगर दुनिया के आगे मुस्कुराया करती थी पति और घर उसकी दुनिया थे और बिगडे हाल वो कुशलता से सवारा करती थी मगर बुरा हो इन टी वी सिरिअलों का इन्होने अजब की माया फैलाई है आज की स्त्री किसी के बस में नही आई है आज की स्त्री जाने क्या क्या करती है पल में सीता तो पल में शूर्पनखा बन जाती है पानी भी पिलाये तो शक होता है षडयंत्र रचना ,शक करना तो इनका जनम सिद्ध अधिकार मालूम होता है ये कौन सी रचना है प्रभु की जाने और क्या मर्ज़ी बुद्धू बक्से की पुरूष तो सदा ही व्यभीचारी था प्रकृति के नियमों का आभारी था परिवार की रक्षा करना और दुनियादारी उसका काम था अच्छे नागरिक बनाना , स्त्री के नाम था पुरूष घाव खाता और देता था थका हारा जब घर लौटता, तो स्त्री मरहम लगाती थी इसी नियम से परिवार नाम की संस्था

"दरस"

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१."उनकी निगाहों में आज हमने , इक फ़साना देखा है बिखरी है अपनी जिन्दगी, मगर, इक मुक्कम्मल जमाना देखा है अपने ग़मों की शिकायत नही मुझको खुदा से उनके अश्कों से हमने , मुस्कुराना सीखा है "   २। "इक दरस का उनके,  ज़माने से इंतज़ार है  बदले हैं चेहरे वक्त ने,  हजारों उस हमनशीं से हमें प्यार है  छुपती है हकीकत ज़माने की, उनके नर्म रुखसारों से  होती है दिल्लगी बेरहम , अक्सर हजारों से  जाने फ़िर भी दिल क्यों कहता है के ये जूनून नही बेकार है  बस इक दरस का उनके, ज़माने से इंतज़ार है " (अनिल मिस्त्री)

"इक बात "

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"मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे बरसों से दिल में छुपायी , इक बात कहनी थी मगर तुमसे मै क्या हूँ, क्यों हूँ , ये तुमसे मुझे कहना है बड़ा वीरान है दिल और रास्ता बड़ा सूना है गुजारे कितने तनहा सफर हमने तम्मंनाओं ने तोडे दम जाने कितने और दर्द का सैलाब जब भी बढ़ता रहा ये दिल बस, जिन्दगी से तुम्हारी ही आरजू करता रहा छुपाये थे ये राज़ , दिल में जाने कबसे मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे बहुत समझा जिन्दगी को, मगर फ़िर भी ना समझे सुकून की तलाश में हम, ज़माने भर में भटके ना जाने क्या-क्या खोया है उमर भर मेरे अश्क की इक बूँद से, बड़ा नही समंदर मेरी तस्वीरों की हकीकत, बन गए तुम मिल के तुम से गम सारे, हो जाते गुम इस वीरान चमन में , बहार बन के आ जाओ गर्म राहों पे मेरी , घटा बन के छा जाओ कहनी थी बस , यही इक बात तुमसे के ये खुशनसीबी है , की मिले हो तुम, आज हमसे कहना है और, बस यही, के कभी ना जुदा होना फ़िर हमसे मिले तो चंद रोज़ पहले ही तुम हमसे "

"दिल का सुकून "

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१."मालूम ना हुआ की , कब तुम अपने बन गए देखते ही देखते , असमान के रंग बदल गए धुंध सी छा गई यादों पे , हमारी और अनजान थे जो कल तक , वो आज दिल का सुकून बन गए " २."दिल के चंद अहसास , अब कैद ही कर लें तो क्या गम है दूर से ही देखी है हमने तेरी मुस्कुराहटों की बहारें " ३ "चाहते हैं हम तुम्हे इतना, की क्या बताएं कमी है अल्फाजों की, वरना हम तो लिखते ही जाएँ " ४ "आहट "दिल में तुम्हारी , आहट का , अजीब ये अहसास है कुछ ना होकर भी लगता है की सब कुछ मेरे पास है "

"आवारा ख्वाब "

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"बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे , टिकते ही नही किसी शाख पर ना थमते हैं , ना रुकते हैं, बस बरस जाते हैं किसी बहार पर ना माँगा मेरे ख़्वाबों ने कुछ किसी से बस दे डाला अपना सब कुछ खुशी से लहलहाई हैं वादियाँ जाने कितनी खिलाये हैं इन्होने , गुल जाने कितने दे के लबों को मुस्कान , बढ जाते हैं अपनी राह पर बड़े आवारा हैं ख्वाब मेरे टिकते ही नही किसी शाख पर "

"बरबाद गुलिस्तान"

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"बरबाद गुलिस्तान ,गर्दिश में सितारे कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें मुझको नही पता की मेरा अंजाम क्या है बस वफ़ा की ख्वाहिश में , दर्द में भीगा एक पैगाम नया है इक झूठ कहा था , कभी मैंने तुमसे इक चमक तेरी निगाहों में , जैसे चाँद सी सूरत में , चमकते दो सितारे मजबूर था मै भी क्या करता एक कमसिन कोरी सी तस्वीर में , मनपसंद रंग और कैसे भरता तुम एक शहजादी नाज़ुक सी मै एक सैनिक हारा सा बिगड़ी दिल की दुनिया , सोचा इक झूठ से सवारें बरबाद गुलिस्तान , गर्दिश में सितारें कौन है साथ , अब किसका नाम पुकारें तुम्हे आदत थी गुलों की नजाकत की रंगों आब की , खुशबुओं की बस्ती में खिलखिलाने की मुझे आदत थी , जख्मों को हरा रखने की , जखम पे जखम खाने की तभी इक झूठ कहा था तुमसे वो झुक के मेरी निगाहों में झांकना मुस्कुराने से तुम्हारे, वीरानो में छाने लगी थी बहारें दिल के जख्म भरने लगे थे बस यूँ ही हम तुमसे मोहब्बत करने लगे थे कहता है मगर खुदा सबसे हो जिससे दिल की लगी ना झूठ कहना कभी उससे रेत की बुनियादों पे महल नही बना करते हारे से सैनिक कभी शहज़ादे नही हुआ करते हो के रुसवा तुमसे ये दिल पुकारे मोहब्बत सच थी झू

" तनहा आदमी "

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"बोझिल है हवा, सर्द मगर चांदनी है अँधेरी है दुनिया दिल की , बस बाहर रौशनी है रोज़ मिलते हैं , मुझसे लोग बहुत सब कहते हैं , तनहा बहुत ये आदमी है गुमहो गई वफ़ा , खो गई मोहब्बतें फ़िर भी कहते हैं की , बाकी ये जिंदगानी है "

" यादें "

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"यादें तो बहुत आती हैं , तुम्हारी , तनहा शामों में भर जाती हैं , अश्कों के जाम नज़र के पैमानों में यूँ तो हर घड़ी चेहरे पे चढा है नकाब, मुस्कराहट का सितम ढाती यादों के दर्द, देखे तो ज़रा कोई, मेरे कागजी जज्बातों में अपनाना बहुत मुश्किल है ये सच की , वक्त ना कभी थमा होता है जो हैं दिल के करीब आज, कल उन्ही से जुदा होना होता है फ़िर आएगा कभी उन यादों का लंबा काफिला लाख तडपे दिल, मगर ना रुकेगा वक्त का ये सिलसिला तब निकलती है दिल से इक आवाज़ , की तुम आ जाओ मेरी जिन्दगी के वीरानो में क्योंकि यादें तो बहुत आती हैं तुम्हारी तनहा शामों में और भर जाती हैं , अश्कों के जाम नज़र के पैमानों में "