"मुलाक़ात"
"AISA TO NAHI KE FIR KABHI MULAAKAAT NAA HOGI
MUMKIN HAI KAL TAB BHEE YU HEE SITAARON BHARI RAAT HOGI
MILOGE ZINDEGI KEE RAAHON ME HAMSE KABHI NAA KABHI ZAROOR
MAGAR JO AAJ HAI KAL FIR WO BAAT NAA HOGI"
ख्यालों से दोस्ती और ख़्वाबों से इश्क़ होते ही ऐसा लगा की खुद से बातें करने का इससे ख़ूबसूरत तरीका कोई और नहीं हो सकता. ज़िंदगी बहुत से अनुभव कराती है, कुछ बहुत अच्छे, तो कुछ बड़े बुरे होते हैं. लाख बुराइयाँ हों दुनिया में, मगर हम खुद को जानते और खुद से मिलते रहें तो हम अपनी नज़रों में बचे रहेंगे. हर किसी को अपने दिल के अंदर के कलाकार को ज़िंदा रखना चाहिए तभी हम सन्तुष्ट रह सकते हैं. इक कलम है अपनी , हो के जिस पे सवार हम अपने ख्याली आसमान में उड़ान भरा करते हैं .
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें