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जुलाई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुबह मेरे शहर की

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"मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की , शाम मेरे शहर की वो महक मेरी मिटटी की , वो रौनक मेरी मोहब्बत की वो रौशनी कारखाने की च्म्नियों की , मुंह अंधेरे लगती एक बड़े जहाज सी ब्रेड वाले के भोंपू की बुलंद आवाज़ स्कूल जाते बच्चों की नन्ही फौज सी मुझको पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की अक्सर पूछते हैं , लोग मुझसे, ऐसा तुम्हारे शहर में क्या ख़ास है कहता हूँ मै उनसे, नही कुछ ख़ास, मगर जो आम है, वो सब जगह ख़ास है यहाँ की फिजा में बड़ा सुकून है , यहाँ की हवा बड़ी रूमानी है और जब भीगती है ये बस्ती , चमचमाती है सड़के लहराती नागिन सी मुझको याद नही, यहाँ से अच्छा कोई नमूना ,खुश्जहान का कहते हैं इसे फौलाद का शहर, मगर ये तो बच्चा है , हिन्दुस्तान का वो कॉलेज की राह में भीग कर जाना कभी टकराना कभी मुस्कुराना ना कोई फिकर है यहाँ , ये तो मोहब्बतों का जहाँ है इसकी मोहब्बतें भी हैं, बड़ी मासूम सी मुझको तो पसंद है सुबह मेरे शहर की, शाम मेरे शहर की वो महक मेरी मिटटी की, वो रौनक मेरी मोहब्बत की "

"हुस्न वाले यूँ ही ना मुस्कुराया करो "

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"हुस्न वाले यूँ ही ना , मुस्कुराया करो हंस कर बातों बातों में, यूँ ही रूठ जाया करो इक राज़ थे हम जिसे जानते हैं वो आहट भी हमारी, ना आजकल, पहचानते हैं वो ख़्वाबों के हसीं ,वो बस्ती मेरी ,एक पल में ना उजाडा करो और बहुत पाक है मोहबत मेरी , इसपे ना शक किया करो हुस्न वाले यूँ ही ना मुस्कुराया करो हंस कर बातों बातों में ,यूँ ही ना रूठ जाया करो "

" मुर्गे की हलाली " (हास्य कविता)

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"एक बार पूछा हमसे किसी ने कहो मित्र क्या हाल है हमने कहा , वही हड्डी वही खाल है उसने कहा बड़े खुश नज़र आते हो चहके चहके से चले जाते हो ना होली है , ना आज दीवाली है फ़िर चौखटे पे तुम्हारे क्यूँ छाई ये लाली है हमने कहा मित्र राज ये बड़ा गहरा है मंजर दिल का हमारे, बड़ा सुनहरा है पेट के इंतजाम ने सबकी नींद उड़ा ली है ऊपर से पालतू चिडियों से और आफत बड़ा ली है पक् - पक् कुक्दुक कू , से मोहल्ला परेशान था सबकी नज़रों में एक शातिर मुर्गा जवान था उसका इलाज ढूँढ कर छाई खुशहाली है सब यार भाई आना , आज घर पे , क्योंकि आज... मेरे मुर्गे की हलाली है "

" मुस्कराहट "

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1"यूं लगता था की सब कुछ लुटा देंतेरी इक मुस्कराहट पे लुट कर ही तो हमने जानाकी क्यों तुम्हे मुस्कुराने की आदत है " २। "हवा के इक झोंके से जब, बादल का कोई टुकडा हटता है तब तेरे सुर्ख होठों से , मुस्कुराहट का शहद टपकता है बरसती है तेरे चहरे से, बेहिसाब मासूमियत सहर की रौशनी से जब ,कुहरा कोई छंटता है शाम-ओ -सहर तो बहाने हैं , बस तेरी पलकों के झुकने उठने के मासूम सितम पे तो तेरे , आसमां भी झुकता है बहुत गिरा मै, जिन्दगी की राहों में वो तो बस, मेरे सुकून का ही रास्ता है बस अब तो यही कहता हूँ की, ख्यालों में मेरे भी ,चाँद कोई इक बसता है "

" तस्वीर "

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"दिल्ली के बस स्टॉप्स"

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"दिल्ली के बस स्टॉप्स की बात ही अलग है , मेरा ऑफिस का समय kuchh ऐसा hai की mai रोज़ सुबह इन बस स्टॉप्स ko बड़े ध्यान से देखा करता हूँ , और महसूस किया करता हूँ, इनकी जीवंत कार्य शैली को , समय के साथ जीवन और सपनो के संघर्ष को , इंसान की उस शक्ति को जो उसे सारी सृष्टि से अलग बनता है। उम्मीद और भागमभाग का अजीब ताना बाना। वैसे तो हर मेट्रो सिटी की सुबह का नज़ारा लगभग एक जैसा ही होता है, मगर फ़िर भी दिल्ली कुछ अलग है। इसे अलग बनाने वाली कई सारी बातें हैं। जैसे की शुद्ध हिन्दी बोलने वाले लोग , खूबसूरत लड़कियां या शायद औरतें (ये पहचान करना बहुत मुश्किल है इस शहर में ), खिलती रंगत के लोग, व्यावसायिक बातों में भी घुली मिली मासूमियत, आलू के पराठों और लस्सी की खुशबू, ऍफ़ एम् की चटर पटरऔर बहुत कुछ ऐसा जो यहाँ की सुबह को और जगहों से अलग बनता है। एक ऐसी सुबह जो हिंदुस्तान की लगती है, किसी विशेष राज्य या भाषा की नही। माना की बहुत कुछ ग़लत है, बहुत कुछ ख़राब है , मगर हेलमट लगाना ज़रूरी है, कागजात पूरे होने ज़रूरी हैं, १०० की पत्तीका इलाज तो हर जगह चलता है, मगर कम से कम यहाँ किसी को ये कह के नही भग

Khawaaish

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"AAKHIR KYUN NAA JHUKE AASMAAN, MERI KHAATIR MERE HOUSLON ME BULANDI AB BHEE BAAKEE HAI ZINDEGI JUNG BAN GAYI TO BAN HUI JAYE LADNA TO ABHEE ZAARI HAI"

"मुलाक़ात"

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"AISA TO NAHI KE FIR KABHI MULAAKAAT NAA HOGI MUMKIN HAI KAL TAB BHEE YU HEE SITAARON BHARI RAAT HOGI MILOGE ZINDEGI KEE RAAHON ME HAMSE KABHI NAA KABHI ZAROOR MAGAR JO AAJ HAI KAL FIR WO BAAT NAA HOGI"
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१. "ख़ुशी""पूछा था एक बार किसी ने राह में रोककर, हमसे कभी , क्यों तनहा चलते हो, क्या ना मिला कोई हमराह तुम्हे कहीं एक सर्द मुस्कान के साथ कहा था हमने, क्यों करते हो दिल्लगी रिश्ते पुराने निभाने जो भारी लगते हैं, नए रिश्ते क्या बनाते जो होते दिल के करीब उन्हें साथ ले के भला क्यों रुलाते शमशान का धुंआ लगती है अब तो चांदनी भी जिन्दगी लगती है तेज़ रफ़्तार सड़क के जैसी याद है मगर मुझको, एक बार मिली थी हमें भी एक सच्ची खुशी भीगी सी सड़क पे चलती वो, तेज़ तेज़ कदमो से, पुकारा जब हमने उसे, पलट के मुस्कुराई थी,वो ओस में भीगे गुलाब सी" #################################################################### २."क्यों भला चाँद मेरे आगोश में लिपट के रूठ जाता है छिप के

आफ़ताब

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"गुज़र गया सफ़र बहारों का, अब वीराना शुरू हुआ जाता है बडी रौशन थी, उस आफताब से मेरी राहें वो भी मगर, अब गम हुआ जाता है" (अनिल मिस्त्री)

"चाँद”

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१. "समझ कर चाँद सोचा था ,   तुम्हे भूल जायेंगे हर अँधेरी रात में मगर ,   तुम ही तुम तो याद आए हो "   २." सदियाँ लगी होंगी   जाने कितनी तुझको बनने में   और चाँद हो तुम आस्मां के   अनगिनत सितारों में" (अनिल मिस्त्री) 

दिल की बात

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"कहते हैं की दिल की बात, किसी को बताया नही करते  बताएं भी तो , दुहराया नही करते  कुछ नजारे चुरा ले जाते हैं , अंधेरे अक्सर  मगर शाम की रौशनी को , रातों में भुलाया नही करते " (अनिल मिस्त्री)